कुमारी राधा गोपाल
नाम- प्राप्त शरीर का नाम कुमारी राधा गोपाल
जन्म दिनांक – 15 -04- 2001
जन्मतिथि:- (चैत्र वैशाख सप्तमी)
शरीर का जन्म स्थान- ग्राम ओवन, तहसील हिंडोली, जिला बूंदी, राजस्थान
आध्यात्मिक शिक्षा- परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ग्वाल संतश्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में गौ-कथा, श्रीमद्भगवत गीताजी, साधन निधि, वेदांत सत्संग का अध्ययन-श्रवण वर्ष 2024 में किया।
सामान्य लौकिक जीवन परिचय :–
प्राप्त वर्तमान शरीर का जन्म दिनांक 15 अप्रैल 2001 बूंदी जिले छोटे से गांव ओवन में जांगिड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ। बाल्यावस्था से जीवन में संघर्ष रहा। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मेरे माता-पिता स्थान बदल-बदल कर निवास करते थे। आर्थिक परेशानियों के चलते जीवन में आध्यात्मिक और धार्मिक वातावरण नहीं मिला, परंतु समय एक जैसा नहीं रहता है। जीवन सुख एवं दु:ख का संयोग है। जब दु:ख आता है, तो सुख भी अवश्य आता है। धीरे-धीरे समय परिवर्तित हुआ और जब मेरी आयु 8- 9 वर्ष की हुई, तब हमारे गांव में परम पूज्य गुरुदेव भगवान के माध्यम से चल रही विश्व की सबसे पहली लम्बी व सबसे बड़ी पदयात्रा “”31 वर्षीय गो पर्यावरण एंव अध्यात्म चेतना पदयात्रा”” का आगमन हुआ, जिससे मेरा जीवन बदल गया। भगवती गौ माता की सेवा करने की प्रेरणा मुझे परम पूज्य गुरुदेव भगवान की वाणी से प्राप्त हुई और मैं जीवन में लघु गौ-सेवा करना प्रारंभ कर दिया। 11 वर्षों तक अकेले ही गौ-सेवा की। माता-पिता एवं परिजनों ने कई प्रकार की बाधाऐं इस सेवा कार्य में प्रस्तुत की, परंतु किसी भी परेशानी से ना घबराकर मैंने अपने गौ-सेवा के कार्य को जारी रखा। प्रतिदिन घर में विवाद हुए, झगड़े हुए परंतु गौ-सेवा के कार्य से मन कभी नहीं डगमगाए।
मुझसे गौमाता की पीड़ा देखी नहीं जाती थी, जहाँ कही से भी सूचना मिलती थी कि गोवंश पीड़ा में है, वहाँ पर जाती और उनकी चिकित्सा करती।
जैसे-जैसे गौ-सेवा आगे बढ़ी, वैसे-वैसे गौ-सेवा में अन्य लोगों का सहयोग मिलने गया। कुछ समय बाद मेरी भेंट दो गौभक्त बहिनों से हुई, जिनका संपूर्ण जीवन गौमाता जी को समर्पित था। उन बहनों के गौ-सेवा के अत्यंत समर्पित भाव को देखकर मेरे मन के गौ-सेवा एवं गौ-रक्षा के भावों को और अधिक बल मिला। उन बहनों के संग मिलकर मैंने अपने जीवन की इस सेवा यात्रा को मजबूती से प्रारंभ किया। मैं उन बहनों के साथ गौमाता की चिकित्सा सेवा के लिए गांव-गांव जाने लगी। मन में सेवा के भाव तो अत्यंत प्रबल थे, परंतु आने-जाने के लिए वाहन की व्यवस्था न होने के कारण कई बार गौमाताओं को पीड़ा सहनी पडती थी, यह देख मन में बहुत पीड़ा होती थी। हमारी इस पीड़ा को हमने आजाद हिंद गौशाला के गौभक्त भाइयों के सामने कहा, तो उन्होंने हमारे इस सेवा कार्य हेतू वाहन की व्यवस्था कर दी।
माँ के आशीर्वाद से अब माँ की सेवा बिना किसी बाधा के होने लगी। सेवा के साथ-साथ माँ की रक्षा करने का कार्य करने का पुनीत कार्य भी अब जोर शोर से आगे बढ़ने लगा। गौ तस्करों से एंव कसाइयों से गौमाता की रक्षा करना, दुर्घटनाग्रस्त गौमाता की चिकित्सा करना, गौमाता को उनकी पीड़ा लीला से मुक्त करना…यही सब कार्य अब मेरे जीवन का जैसे एक मात्र लक्ष्य बन चुका था।
गौमाता की सेवा/रक्षा का कार्य और गति से हो सके, इस हेतू परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान के श्री चरणों में आश्रय लिया। गुरुदेव भगवान की सेवा में प्रस्तुत होकर के, उनका मार्गदर्शन पाकर के जीवन के सारे सकाम भावों का शमन हुआ और यदि कुछ शेष रहा तो सिर्फ और सिर्फ निष्काम गौ सेवा का भाव…
तन, मन, धन, वाणी, वचन, कर्म, हर प्रकार से गौमाता की सेवा हो, इसी भाव से पूज्य सद्गुरुदेव भगवान के सानिध्य में साप्ताहिक गौ कृपा कथा का अध्ययन प्रारंभ किया।
जिम्मेदारियां:-
1. 43 नियमों का पालन करते हुए गो कृपा कथा के माध्यम से गो महिमा का प्रचार करना।
कार्य सिद्धि हेतु संकल्प:-
1. गोव्रती प्रसादी का ही प्रयोग करना।
2. पूर्ण व्यसनमुक्त रहना।
3. गोबर उठाये बिना और गो ग्रास जिमाए बिना भोजन नहीं करना।