कुमारी धेनु प्रिया गोपाल (अंतिमा)

 

नाम :- कुमारी धेनु प्रिया गोपाल (अंतिमा)
जन्मतिथि :- आषाढ़ कृष्ण अमावस्या
जन्म दिनांक :- 14 जुलाई 2007
जन्म स्थान :- गांव तुरकड़ी, तहसील बेगू, जिला चित्तौड़गढ़,  राजस्थान
लौकिक शिक्षा :- वर्तमान में 10वीं कक्षा में अध्ययनरत 



आध्यात्मिक शिक्षा:- 
1. श्री धाम वृंदावन में परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान हित वनमाली दास वाल्मीकि गुरुजी के सानिध्य में श्रीमद् भागवत महापुराण और रामचरितमानस का अध्ययन किया।
2. परम पूज्य सद्गुरुदेव भगवान ग्वाल संतश्री गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज जी के सानिध्य में गौ-कथा, श्रीमद्भगवत गीताजी, साधन निधि, वेदांत सत्संग का अध्ययन-श्रवण वर्ष 2024 में किया।

सामान्य लौकिक जीवन परिचय:- 
प्राप्त वर्तमान शरीर का जन्म दिनांक 14 जुलाई 2007 चित्तौड़गढ़ जिले के छोटे से गांव में वैष्णव परिवार में हुआ। परिवार की पृष्ठभूमि धार्मिक होने के कारण बचपन से ही आध्यात्मिक वातावरण प्राप्त हुआ। माता-पिता और दादाजी के साथ कथा श्रवण करना, मंदिर जाना और बाल्यकाल में दादाजी के साथ गौ-सेवा का भी सुअवसर प्राप्त हुआ। गंगा, यमुना, सरस्वतीस्वरुपा तीन गौमाता की उपस्थिति घर पर थी। नित्य उनके दर्शन और सेवा का लाभ मिलता था, परंतु माता-पिता को किसी कारणवश शहर में रहना पड़ा, इस कारण 7 वर्ष की आयु में गांव का त्याग करने से प्रत्यक्ष गौ-सेवा वहीं थम गई। पूजा पाठ, व्रत अनुष्ठान, मंदिर जाना, कथा श्रवण करना जीवन में सब चल रहा था, परन्तु उस समय गौ-सेवा जीवन में दूर-दूर तक नहीं थी।
लेकिन परिवर्तन संसार का नियम है, कुछ समय व्यतीत होने के पश्चात ईश्वर कृपा से जीवन में बदलाव आया और वर्ष 2021 में मन में प्रबल भाव आया कि भगवान की लीला कथाओं का गुणगान करना हैं। माता-पिता को जब मेरे इन शुभ भावों का ज्ञान हुआ, अत्यंत प्रसन्नचित होकर के मेरे माता-पिता ने कथा सीखने के लिए श्री धाम वृंदावन भेजा और श्रीधाम वृंदावन में प्रभु कृपा से श्री हित वनमालीदास, वाल्मीकि गुरुजी का पावन सानिध्य प्राप्त हुआ और गुरुदेव के आशीर्वाद से  कथा का अध्ययन पूर्ण किया।
प्रथम बार जन्मभूमि के समीप एक गोशाला में प्रभु की महिमा गाने का अवसर प्राप्त हुआ।
आयोजन के दौरान छठवें दिवस एक संत का पधारना हुआ। संत के रूप में साक्षात् भगवान स्वयं कृपा करके पधारें, संतश्री का नाम परम पूज्य गोवत्स बालकृष्णदास जी था। कुछ समय गुरुदेव भगवान का सानिध्य मिला, तब गौमाता की महिमा धीर-धीरे समझ में आने लगी वरना पूर्व में यह भी ज्ञात नहीं था कि गो-सेवा किस प्रकार की जाती है।
एक बार महाराष्ट्र में शरीर के अनुज भ्राता आनंद दास जी द्वारा प्रभु की महिमा कथा चल रही थी,  तो उस कथा में परम पूज्य श्री सद्गुरुदेव भगवान स्वामी गोपालानंद जी सरस्वती जी महाराज का पधारना हुआ। वहाँ पर पूज्य गुरुदेव के सत्संग सुनने के बाद पूर्ण रूप से हृदय में गौ भक्ति जाग्रत हुई और गुरुदेव भगवान की वाणी से प्रेरित होकर मैंने पूर्णत: गोव्रती होने का निश्चय किया।  
श्री गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा द्वारा संचालित कामधेनु गौ अभयारण्य, सालरिया, आगर-मालवा, मध्य प्रदेश, में परम पूज्य गुरूदेव भगवान के मुखारविंद से एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव में प्रथम बार गो कथा श्रवण करने का अवसर प्राप्त हुआ, इससे पूर्व यह ज्ञान नहीं  था कि गो-कथा क्या होती है।
कामधेनु गौ अभयारण्य, सालरिया, आगर-मालवा, मध्य प्रदेश, में रहकर पूज्य गुरुदेव भगवान गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद सरस्वती जी के सानिध्य में गो-कथा का अध्ययन करने का अवसर मिला और साथ ही साथ जीवन में एक लक्ष्य भी मिला….की चाहे कुछ रहे या ना रहे…गौ सेवा जीवन में अवश्य रहेगी।
जीवन पर्यंत जितनी हो सके तन से, मन से, धन से, वाणी से, कर्म से, जैसे भी करेंगे परन्तु गौ-सेवा अवश्य करेंगे तथा जन-जन तक यह भाव पहुँचायेंगे कि ” गावो विश्वस्य मातर:” गाय माता सारे विश्व की माता है।

जिम्मेदारियां:-
1. 43 नियमों का पालन करते हुए गो कृपा कथा के माध्यम से गो महिमा का प्रचार करना।

कार्य सिद्धि हेतु संकल्प:-
1. गोव्रती प्रसादी का ही प्रयोग करना

2. पूर्ण व्यसन मुक्त होकर जीवन यापन
3. गो सेवा गो दर्शन करके प्रसादी ग्रहण करना